पवन

पवन   :-- पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब में क्षैतिज विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती है। क्षैतिज रूप से इस गतिशील हवा को पवन कहते हैं । 

 ➤ ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिशील हवा को वायुधारा कहते हैं । यदि पृथ्वी स्थिर होती और उसका धरातल समतल होता तो पवन उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र से  सीधे निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर समदाब रेखाओ पर समकोण बनाती हुई चलती है, परंतु वास्तविक स्थिति यह है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन कर रही है और उसका धरातल समतल नहीं है । अतः पवन कई कारणों के प्रभावाधिन अपनी दिशा में परिवर्तन करती हुई चलती है । यह कारण है - दाब प्रवणता बल ,कोरियालिस प्रभाव ,अभिकेंद्रीय त्वरण एवं भू-घर्षण।

कोरिअलिस प्रभाव  :- पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें अपनी मूल दिशा में विक्षेपित हो जाती है । इसे कोरियालिस बल कहते हैं । इसका नाम फ्रांसीसी वैज्ञानिक के नाम पर पड़ा है जिसने सबसे पहले इस बल के प्रभाव का वर्णन 1835 ईसवी में किया । इस बल के प्रभावाधीन उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं । इस विक्षेप को फेरल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था , अतः इसे फेरल का नियम कहते हैं। इसे बाइज- बैलेट नियम द्वारा भी समझा जा सकता है । इस नियम के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति उत्तरी गोलार्ध में पवन की ओर पीठ करके खड़ा हो ,तो उच्च दाब उसके दाई ओर तथा निम्न दाब उसकी बायीं ओर होगा । दक्षिणी गोलार्ध में स्थित इसके ठीक विपरीत होंगी। कोरियालिस बल प्रभाव  विषुवत रेखा पर शून्यं होता है । अर्थात विषुवत रेखा पर पवनो की दिशा में कोई विक्षेप नहीं होता है । इस बल का अधिकतम प्रभाव ध्रुवों पर होता है । अर्थात ध्रुव पर की दिशा में अधिकतम विक्षेप होता है।

निम्न प्रकार के होते हैं -
प्रचलित पवन
मौसमी पवन
स्थानीय पवन


1-- प्रचलित पवन :- पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्र पर एक ही दिशा में वर्ष भर चलने वाली पवन को प्रचलित पवन या स्थाई पवन कहते हैं । स्थाई पवनें एक वायु - भार कटिबंध से दूसरे वायु-भार कटिबंध की ओर नियमित रूप से चला करती है । इसके उदाहरण हैं - पछुआ पवन ,व्यापारिक पवन और ध्रुवीय पवन।

व्यापारिक पवन :-  लगभग 30° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के क्षेत्रों या उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंध से भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर दोनों गोलार्द्ध में वर्ष भर निरंतर प्रवाहित होने वाले पवन को व्यापारिक पवन कहा जाता है कोरियालिस बल और फेरल के नियम के कारण उत्तरी गोलार्ध में अपने दायी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में अपनी बाईं ओर विक्षेपित हो जाता है।

पछुआ पवन :- दोनों गोलार्धों में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधो  से उप ध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंधो की ओर चलने वाली स्थाई हवा को ,इनकी पश्चिमी दिशा के कारण, पछुआ पवन कहा जाता है। पछुआ पवन को का सर्वश्रेष्ठ विकास 40° से 65° दक्षिणी अक्षांसो  के मध्य पाया जाता है । यहां के इन अक्षांश को गरजता चालीसा, प्रचंड पचासा,तथा चीखता साठा कहा जाता है।ये सभी नाम नाविकों के दिए हुए हैं।

ध्रुवीय पवन  :- ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियां से उप ध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियां की ओर प्रवाहित पवन को ध्रुवीय पवन के नाम से जाना जाता है । उत्तरी गोलार्ध में इसकी दिशा उत्तर - पूरब से दक्षिण - पश्चिम की ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण- पूर्व से उत्तर -पश्चिम की ओर है।


2- मौसमी पवन :-  मौसम या समय के परिवर्तन के साथ जिन पवनो की दिशा बदल जाती है उन्हें मौसमी पवन कहा जाता है । जैसे - मानसूनी पवन, स्थल समीर तथा समुद्री समीर( पवन) ।


3 - स्थानीय पवन : प्रमुख गर्म स्थानीय पवन।

चिनूक :- यह संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में रॉकी पर्वत -श्रेणी के पूर्वी ढाल के साथ चलने वाला गर्म या  शुष्क पवन है। यह पवन रॉकी पर्वत के पूर्व के पशुपालकों के लिए बड़ा ही लाभदायक है ,क्योंकि शीतकाल के अधिकांश अवधि में यह बर्फ को पिघलाकर चारागाहों को बर्फ से मुक्त रखता है ।

फॉन :- यह  आल्प्स पर्वत के उत्तरी ढाल से नीचे उतरने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है । इसका सर्वाधिक प्रभाव स्विट्जरलैंड में होता है । इसके प्रभाव से बर्फ पिघल जाती है और  पशूचारकों के लिए चारागाह मिल जाता है । इसके प्रभाव से अंगूर जल्दी पक जाते हैं।

हरमटान :- यह सहारा रेगिस्तान से उत्तर - पूर्व दिशा में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है । यह पवन सहारा से गिनी तट की ओर बहती है । गिनी तट पर इसे डॉक्टर हवा कहा जाता है।


सिराको :-  यह सहारा मरुस्थल से भूमध्य सागर की ओर बहने वाली गर्म हवा है । जब यह भूमध्य सागर पार करती है तो आद्र् हो जाती है और इटली पहुंच जाती है । इसके अन्य स्थानीय नाम भी हैं : जैसे -खमसीन (मिस्र में ),गिबली (लीबिया में),  चिली (ट्यूनीशिया में ),लेस्ट (मैडेरिया में) सिराको (इटली में )और लेबेक( स्पेन मे)।

सिमुम :- यह अरब रेगिस्तान में बहने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।


ब्लैक रोलर :-  यह उत्तरी अमेरिका के विशाल मैदान में दक्षिणी- पश्चिमी या उत्तरी पश्चिमी तेज धूल भरी चलने वाली आंधी है।

ब्रिक फील्डर :- ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।

नार्वेस्टर :- न्यूजीलैंड में उच्च पर्वतों से उतरने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।

सामल :- यह इराक तथा फारस की खाड़ी में चलने वाली गर्म एवं सुसक हवा है।

कोयमबैंग:- यह जावा इंडोनेशिया में बहने वाली गर्म हवा है यह तंबाकू की खेती को काफी नुकसान पहुंचाती है।

सांता आना :- यह कैलिफोर्निया में सांता आना घाटी से चलने वाली गर्म हवा है। यह तम्बाकू की खेती को कॉफी नुकसान पहुचाती है ।

जेट- प्रवाह  :- क्षोभमंडल की ऊपरी परत में बहुत तीव्र गति से चलने वाले संकरे, नलीकाकार एवं विसर्पी पवन- प्रवाह को जेट -प्रवाह कहते हैं । यह 6 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होता है । यह दोनों गोलार्द्ध में पाया जाता है ,परंतु उत्तरी गोलार्ध में यह अधिक शक्तिशाली होता है । इसमें वायु 120 किलोमीटर प्रति घंटा से चलती है। जेट प्रवाह वायुमंडलीय विक्षोभ ,चक्रवातो,प्रतिचक्रवातो, तूफानों और वर्षा को उत्पन्न करने में सहायक होते है। आधुनिक खोजों के अनुसार एशिया में मानसून पवनों के कारण माना जाता है । यह पृथ्वी पर तापमान के वितरण का संतुलन बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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