➤ पृथ्वी की सतह के कठोर भाग को चट्टान कहते है। जो पृथ्वी की बाहरी परत की संरचना की मूलभूत इकाई है।
➤ उत्पत्ति के आधार पर यह तीन प्रकार की होती है।
- आग्नेय
- अवसादी
- कायान्तरित
➤ आग्नेय चट्टान:- यह मैग्मा या लावा के जमने से बनती है। जैस-ग्रेनाइट, बेसाल्ट, पेगमाटाइट, डायोराइट ,ग्रेबो आदि।
➤ आग्नेय चट्टान स्थूल, परतरहित, कठोर, संघनन एवं जीवाश्म रहित होती है। आर्थिक रुप से यह बहुत ही संपन्न चट्टान है।
➤ इसमें चुंबकीय लोहा, निकिल, तांबा ,सीसा, जस्ता, क्रोमाइट, मैगनीज, सोना तथा प्लेटिनम पाए जाते है।
➤ बेसाल्ट में लोहे की मात्रा सर्वाधिक होती है। इस चट्टान के क्षरण से काली मिट्टी का निर्माण होता है।
➤ पैगमेटाइट कोडरमा:- ( झारखंड) में पाए जाने वाला अभ्रक इन्हीं शैलो से मिलता है।
➤ आग्नेय चट्टानी पिंड:- मैग्मा के ठंडा होकर ठोस रूप धारण करने से विभिन्न प्रकार के आग्नेय चट्टानी में पिंड बनते है। इनका नामकरण इनके आकार ,रूप ,स्थिति तथा आस-पास पाई जाने वाली चट्टानों के आधार पर किया जाता है ।
➤ अधिकांश चट्टानी पिंड अंतर्वेदी आग्नेय चट्टानों से बनते है।
- बैथोलिथ:- यह सबसे बड़ा आग्नेय चट्टानी पिंड है ,जो अंतर्वेदी चट्टानों से बनता है। वास्तव में यह एक पतालिय पिंड है। यह एक बड़े गुंबद के आकार का होता है । जिसके किनारे खड़े होते हैं। इसका ऊपरी तल विषम होता है। यह मूलतः ग्रेनाइट से बनता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का इदाहो बैथोलिथ 40 हजार वर्ग किलोमीटर से भी अधिक विस्तृत है। कनाडा का कोस्ट रेंज बैथोलिथ से भी बड़ा है।
- स्टॉक:- छोटे आकार के बैथोलिथ को स्टॉक कहते है। इसका ऊपरी भाग गोलाकार गुंबदनुमा होता है। स्टॉक का विस्तार 100 वर्ग किलोमीटर से कम होता है ।
- लैकोलिथ :- जब मैग्मा ऊपर की परत को जोर से ऊपर को उठाता है और गुंबदकार के रूप में जम जाता है तो इसे लैकोलिथ कहते हैं। मैग्मा के तेजी से ऊपर उठने के कारण यह गुंबदाकार ठोस पिंड छतरीनुमा दिखाई देता है। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भाग में लैकोलिथ के कई उदाहरण मिलते हैं।
नोट :- लैकोलिथ वर्हिवेधी ज्वालामुखी पर्वत का ही एक अंतर्वेदी प्रतिरूप है।
- लैपोलिथ :- जब मैग्मा जमकर तश्तरीनुमा आकार ग्रहण कर लेता है तो उसे लैपोलिथ कहते हैं। लैपोलिथ दक्षिण अमेरिका में मिलते हैं
- फैकोलिथ :- जब मैग्मा लहरदार आकृति में जमता है तो फैकोलिथ कहलाता है।
- सील :- जब मैग्मा भू -पृष्ठ के समानान्तर परतो में फैल के जमता है, तो उसे सील कहते है। इसकी मोटाई 1 मीटर से लेकर सैकड़ों मीटर तक होती है। छत्तीसगढ़ तथा झारखंड में सील पाए जाते हैं । 1 मीटर से कम मोटाई वाले सील को सीट कहते है।
- डाइक :- जब मैग्मा किसी लंबवत दरार में जमता है तो डाइक कहलाता है। झारखंड के सिंहभूमि जिले में अनेक डाईक दिखाई देते है।
➤ अवसादी चट्टान :- प्रकृति के कारकों द्वारा निर्मित छोटी-छोटी चट्टान में किसी स्थान पर जमा हो जाती हैं और बाद के काल में दबाव या रासायनिक प्रतिक्रिया या अन्य कारणों के द्वारा परत जैसी ठोस रूप में निर्मित हो जाती है। इन्हें ही अवसादी चटान कहते हैं। जैसे- बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, स्लेट, कंगलोमरेट, नमक की चट्टान एवं सेलखड़ी आदि।
➤ अवसादी चट्टानें परतदार होती हैं। इनमें वनस्पति एवं जीव जंतुओं का जीवाश्म पाया जाता है। इन चट्टानों में लौह -अयस्क ,फास्फेट ,कोयला एवं सीमेंट बनाने की चट्टान पाई जाती है।
➤ खनिज तेल अवसादी चट्टानों में पाया जाता है अप्रवेशय चट्टानों की दो परतो के बीच यदि प्रवेशय शैल की परत आ जाए तो खनिज तेल के लिए अनुकूल स्थिति पैदा हो जाती है।
➤ दामोदर, महानदी तथा गोदावरी नदी बेसिनों की अवशादी चट्टानों में कोयला पाया जाता है।
➤ आगरा का किला तथा दिल्ली का लाल किला बलुआ पत्थर नामक अवसादी चट्टानों का बना है।
➤ कायांतरित चट्टान :- ताप, दाब एवं रासायनिक क्रियाओं के कारण आग्नेय एवं अवसादी चट्टानों से कायांतरित चट्टान का निर्माण होता है।