आर्द्रता, बादल


आर्द्रता - वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प को वायुमंडल की आर्द्रता कहते हैं 
यह तीन प्रकार की होती है। 

निरपेक्ष आर्द्रता -  वायु की प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं।  इसे ग्राम प्रति घन मीटर में व्यक्त किया जाता है
विशिष्ट आर्द्रता- वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं।  इसे ग्राम प्रति किलोग्राम की इकाई में मापा जाता है

सापेक्ष आर्द्रता - किसी भी तापमान पर वायु में उपस्थित जलवाष्प तथा उसी तापमान पर उसकी जल धारण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं

इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त कर सकते हैं

सापेक्ष आर्द्रता = किसी ताप पर वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा  X 100
                  उसी ताप पर उसी वायु की जलवाष्प शोषण करने की क्षमता
 
सापेक्ष आर्द्रता जलवाष्प की मात्रा एवं वायु के तापमान पर निर्भर करता है
 इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है वायु में जलवाष्प की मात्रा अधिक होने पर
 सापेक्ष आर्द्रता अधिक होती है वायु का तापमान कम होने पर सापेक्ष आर्द्रता 
बढ़ जाती है एवं तापमान बढ़ जाने पर सापेक्ष आर्द्रता कम हो जाती है

संतृप्त  वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100 प्रतिशत होती है

संघनन- जल की गैसीय अवस्था के तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तन होने 
की क्रिया को संघनन कहते हैं यह दो कारणों पर निर्भर करता है 
1. तापमान में कमी पर 2. वर्षा की सापेक्ष आर्द्रता पर

ओसांक-  जिस तापमान पर जल अपनी गैसीय अवस्था से तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होता है उसे ओसांक कहते हैं उस पर वायु संतृप्त हो जाती है और उसकी सापेक्ष आर्द्रता 100% होती है।

पाला या तुषार जब ओसांक, हिमांक से नीचे होता है तब ओस का स्थान पर पाला पड़ता है

ओस पड़ने के लिए ओसांक का हिमांक से निचे होना चाहिए।

कोहरा - वायुमंडल की निचली परत में एकत्रित धूल कण, धुएं के रज एवं संघनित जल पिंडों को कोहरा कहते हैं ओसांक से नीचे वायु का तापमान कम होने पर कोहरे का निर्माण होता है इसमें दृश्यता एक किलोमीटर से कम होती है

धुंध- हल्के-फुल्के कोहरे को कुहासा या धुंध कहते हैं इसमें दृश्यता 1
 किलोमीटर से अधिक किंतु 2 किलोमीटर से कम होती है

बादल- जब मुख्यतः हवा के रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा ठंडे होने पर उसके तापमान के ओसांक से नीचे गिरने से बनते हैं यह अल्प घनत्व के कारण वायुमंडल में तैरते हैं।

रूप के आधार पर बादल निम्न प्रकार के होते हैं

पक्षाभ बादल- यह हिम के कण से बने ऊंचे सफेद और पतले बादल होते हैं। 

कपासी बादल - इनका आकार समतल एवं शीर्ष गुंबदनुमा होता है।

स्तरीय बादल - यह परतदार चादर जैसे लगते हैं यह अधिकांश या पूर्ण आकाश को ढके रहते हैं यह 2  या 3 किलोमीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं।

वर्षा जब जलवाष्प की बूंदे जल के रूप में पृथ्वी पर गिरती हैं तो उसे वर्षा
 कहते हैं। 

वायु के ठंडा होने की विधियों के अनुसार वर्षा तीन प्रकार की होती है। 

संवहनीय वर्षा- जब भूतल बहुत गर्म हो जाता है तो उसके साथ लगने वाली वायु भी गर्म हो जाती है वायु गर्म होकर फैलती है और हल्की हो जाती है यह हल्की वायु ऊपर को उठने लगती है और संवहनीय धाराओं का निर्माण होता है ऊपर जाकर यह वायु ठंडी हो जाती है और इस में उपस्थित जलवाष्प का संघनन होने लगता है संघनन से कपासी मेघ बनते हैं जिससे घनघोर वर्षा होती है इसे संवहनीय वर्षा कहते हैं।

पर्वतकृत वर्षा - जब जलवाष्प से लदी हुई गर्म वायु को किसी पर्वत या पठार
 की ढलान के साथ ऊपर चढ़ना पड़ता है तो यह वायु ठंडी हो जाती है। 
 ठंडी होने से यह संतृप्त हो जाती है और ऊपर चढ़ने से जलवाष्प का संघनन होने 
लगता है इस से वर्षा होती है इसे पर्वतकृत वर्षा कहते हैं।

चक्रवाती वर्षा- चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवाती अथवा वाताग्री वर्षा कहते है।

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